Monday, September 19, 2011

पत्र


हम - तुम 
कयों हैं 
एक अरसे से  
गुम - सुम 
इस अनुत्तरित
से 
प्रश्न का उत्तर मांगते है 
लोग मुझसे

मैंने पूछा कई लोगों से 
पर नतीजा कुछ नहीं
निकला 


आज मै तुमसे पूछता हूँ
क्या तुम्हारे पास 

इस प्रश्न का उत्तर  है
या तुम भी निरुत्तर  हो 

आहें

तेरे लिए 

यदा कदा ही
                  निकलती हैं 

पर तेरी यादों को  

                   दर्द सदा झलकता है 

मन में 

जब जब देखता हूँ 
तेरी वो 
कॉलेज वाली तस्वीर 

इन आँखों से आंसूं  

भले न टपके 


पर 


मेरा दिल रोता है  ,


मै आज भी 

वहीं  तुम्हारा 

इन्तजार करता हूँ 

जहां मै 

आज से 

कई साल भी

तुम्हारा
                                              इन्तजार
                                                                                      करता  था 


अगर हो सके 


                            तो आना जरूर

Monday, September 12, 2011

निशब्द

ये मुस्कुराती हुई फिजायें
ये हर पल रंग बदलता मौसम
ये  तेरी यादों से सराबोर गलियां

जहां से गुजरते हुए आँखें बिना किसी भाव के भी नम होकर ही रहती है
मुझसे कुछ प्रश्न अनकहे से पूछती है

शायद इन गलियों से इनका कोई रिश्ता अभी तक बचा हुआ है ....

मुझे कुछ समझ  नहीं आता अब
शायद तुमने सच कहा था
मै नासमझ या नालायक सा कुछ  हूँ

क्या कहूँ मै


निशब्द सा हूँ मैं