Monday, September 12, 2011

निशब्द

ये मुस्कुराती हुई फिजायें
ये हर पल रंग बदलता मौसम
ये  तेरी यादों से सराबोर गलियां

जहां से गुजरते हुए आँखें बिना किसी भाव के भी नम होकर ही रहती है
मुझसे कुछ प्रश्न अनकहे से पूछती है

शायद इन गलियों से इनका कोई रिश्ता अभी तक बचा हुआ है ....

मुझे कुछ समझ  नहीं आता अब
शायद तुमने सच कहा था
मै नासमझ या नालायक सा कुछ  हूँ

क्या कहूँ मै


निशब्द सा हूँ मैं 

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