Sunday, August 7, 2011

दायरा - तेरी यादों का

रात  के  एकांत  और  घने  अँधेरे  , बढ़ा  देते  हैं  तेरी  यादों  के   घेरे 
. जगता  हूँ  मै  रात  भर  तेरी  यादों  कि  किताब  के   पन्नो  को  पलटते  हुए  ,
मै  हर  रात  खुद  को  समझाता  हूँ  कि  तुझे  भूल  जाऊं 
क्योंकि तुझे नहीं कोई वास्ता  मेरे ग़मों से 
पर  जैसे  ही  रात   के सन्नाटे  अपना  पैर  पसारते  हैं
  मेरी सोच    का  मेरे  दिल  पर  कोई  नियंत्रण  ही  नहीं  रहता  .
फिर  वही  पुनरावृत्ति  होती  है 
. मै  खुद  को  जड़  होता  हुआ  पाता  हूँ 
क्योंकि  मेरी  यादों  में  तू  असीमित  दायरे  में  जीती  है . . . . . . . . , ,

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